एमआरएस मिनरल्स की दबंगई : वन भूमि पर सागौन पेड़ों की कटाई, प्रशासन की चुप्पी पर उठे सवाल

सवालों के घेरे में वन विभाग, नाक के नीचे कटते रहे पेड़,वन विभाग कुम्भकर्णी नींद में सोया रहा

 

 

 

 

सक्ती: खनिज कारोबार में सक्रिय एमआरएस मिनरल्स पर एक बार फिर गंभीर आरोप लगे हैं। कंपनी पर आरोप है कि उसने जमीन खरीदी में गड़बड़ी, करोड़ों की स्टांप ड्यूटी चोरी, नक्शे से छेड़छाड़ और अब वन भूमि पर खड़े सैकड़ों सागौन पेड़ों की अवैध कटाई जैसे कृत्य किए हैं। मामला सक्ती तहसील अंतर्गत खसरा नंबर 2333/8 और 2333/9 से जुड़ा है, जो वर्तमान में अमित कुमार बंसल एवं एक अन्य व्यक्ति के नाम दर्ज है।

 

 

शुरुआत से गड़बड़ खेल

 

ग्रामीणों का कहना है कि जब जमीन की खरीद-बिक्री हुई थी तब इसे कृषि भूमि दिखाया गया था और दस्तावेजों में धान की खेती का उल्लेख दर्ज है। सवाल उठता है कि अगर जमीन कृषि थी तो अचानक वहां सैकड़ों सागौन पेड़ कैसे खड़े हो गए? यह स्थिति स्पष्ट रूप से बताती है कि राजस्व अभिलेखों में गड़बड़ी और हेराफेरी की गई है।

 

करोड़ों की स्टांप ड्यूटी चोरी

 

जमीन खरीदी के समय गलत जानकारी देकर करोड़ों रुपये की स्टांप ड्यूटी चोरी करने के आरोप भी सामने आए हैं। बाद में नक्शे में हेरफेर कर जमीन का स्थान परिवर्तन करवाया गया। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह सब कुछ कंपनी की खदान के लिए जमीन तैयार करने की रणनीति का हिस्सा है।

 

वन भूमि पर सागौन पेड़ों की कटाई

 

ताजा घटनाक्रम में कंपनी पर आरोप है कि उसने पूर्ण वन भूमि पर कब्जा कर वहां लगे सैकड़ों सागौन के पेड़ काट डाले। ग्रामीणों का कहना है कि पेड़ काटने का उद्देश्य जमीन को खाली कर डोलोमाइट की अवैध खुदाई करना है। डूमरपारा और छीतापड़रिया जंगल में पहले से ही इस तरह की खुदाई की शिकायतें लंबे समय से होती रही हैं।

 

पारदर्शिता की जगह अपारदर्शिता

 

जहां शासन-प्रशासन एक ओर डिजिटलीकरण और पारदर्शिता की बात करता है, वहीं इस प्रकरण में राजस्व विभाग की भूमिका संदिग्ध नजर आती है। विभाग ने जमीन की वास्तविक स्थिति सामने लाने के बजाय मामले को उलझाकर रखा और फर्म को फायदा पहुंचाने की भूमिका निभाई।

 

ग्रामीणों का आक्रोश, प्रशासन की चुप्पी

 

इस पूरे घटनाक्रम से ग्रामीणों में भारी आक्रोश है। लोगों का कहना है कि यदि मामले की जमीनी जांच हो तो पूरा सच सामने आ जाएगा। लेकिन प्रशासन की चुप्पी और उदासीनता ने ग्रामीणों के संदेह को और गहरा दिया है।

 

बड़ा सवाल

 

क्या शासन-प्रशासन एमआरएस मिनरल्स की दबंगई और वन भूमि पर हो रहे अवैध कार्यों पर कार्रवाई करेगा?

या फिर यह मामला भी अन्य विवादित प्रकरणों की तरह फाइलों में दबा दिया जाएगा?

 

सवाल अब सीधे तौर पर शासन और प्रशासन की कार्यशैली पर खड़ा है, और यदि शीघ्र ही ठोस कदम नहीं उठाए गए तो यह प्रकरण खनिज माफिया और तंत्र की मिलीभगत की बड़ी मिसाल बन सकता है।

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