
छत्तीसगढ़ की लोक कला और संस्कृति में राम का प्रभाव, राम हृदय के साथ ही व्यवहार में भी शामिल
खैरागढ़: इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के लोक संगीत एवं कला संकाय द्वारा ‘‘लोक परम्परा में राम छत्तीसगढ़ के विशेष संदर्भ में’’ विषय पर दिनांक 07.10.2021 को एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। उद्घाटन सत्र के पूर्व विभागाध्यक्ष नाट्य एवं लोक संगीत डॉ. योगेंद्र चौबे द्वारा संपादित पुस्तक- ‘भारतीय रंगमंच का परिदृश्य’ पुस्तक का विमोचन माननीया कुलपति महोदया, कुलसचिव एवं आमंत्रित वक्ताओं द्वारा किया गया।

तत्पश्चात प्रथम सत्र उद्घाटन सत्र में प्रसिद्व साहित्यकार एवं समीक्षक श्री गिरीश पंकज जी ने आधार व्यक्तव्य में कहा कि छत्तीगढ़ी लोक में राम इतने घुले मिले हैं कि यहा के नर-नारी, पहाड़, पर्वत, नदियां, फल, फूल सभी नामों में भी राम का नाम देखने सुनने को मिलता है। राम को समर्पित स्वरचित छत्तीसगढ़ी दोहे से उन्होंने अपनी बात समाप्त की।
‘‘ राम भजव अउ देख लव हो जाही कल्यान’’
लेव एखर नाव बस बन जाहू बलवान’’
मुख्य अतिथि सुप्रसिद्व साहित्यकार व लोक कला मर्मज्ञ श्री नन्द किशोर तिवारी जी ने अपना उद्बोधन छत्तीसगढ़ी में व्यक्त करते हुए बताया कि उनके बचपन के दिनों में उन पर राम का प्रभाव किस प्रकार पड़ा। इसके साथ ही उन्होंने छत्तीगढ़ी लोक में राम की ऐतिहासिक परम्परा पर भी प्रकाश डाला।

इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ की कुलपति पद्मश्री श्रीमती मोक्षदा(ममता) चन्द्राकर जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि हमारी आज की संगोष्ठी में केवल विषय के सैद्वांतिक पक्ष पर केन्द्रित न होकर इसके व्यवहारिक पक्ष पर पर्याप्त चर्चा होना आवश्यक है। सत्रांत में लोक संगीत एवं कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. काशीनाथ तिवारी जी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
द्वितीय सत्र में प्रो.राजन यादव जी ने छत्तीसगढ़ी लोक गीतों के माध्यम से राम के स्वरूप को दर्शाते हुए वातावरण को राम मय कर दिया। डॉ. पी सी लाल यादव जी ने खैरागढ़ की धरती और लोक परम्पराओं के अनुसार भांचा को प्रणाम करते हुए कहा कि ‘‘भांचा के पांव परबो तभहे हम तरबो’’। उन्होंने विशेष रूप से जनउला पर चर्चा करते हुए इस बात पर जोर दिया कि ‘‘हमर राम हा पूरा लोक मय हे’’

तृतीय सत्र में प्रमुख वक्ता श्री शैलेष श्रीवास्तव जी ने रामकथा व संस्कृति के वैश्विक प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए फादर कामिल बुल के राम कथाओं पर चर्चा की और साथ ही कहा कि राम हमारे हृदय में नहीं हमारे व्यवहार में है। तृतीय सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो.आई.डी. तिवारी ने लोक जीवन की चर्चा करते हुए कहा कि यदि आप लोक में राम और कृष्ण दोनों को मिलाकर देखेंगे तो कौन लोक में ज्यादा है तो आप पाएंगे तो राम लोक में ज्यादा हैं। राम हमारे आदर्श का सत्य है। जो कुछ आप सबसे बेहतर करना चाहते है वो आप राम में स्थापित कर देते हैं। राम श्रेष्ठतम है जो हमारे सोहर से शुरू होते हैं और पचरा तक जाते हैं।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतिम प्रयोगिक सत्र में ‘‘छत्तीसगढी लोक गीतों में राम के प्रभाव को रेखांकित करते हुये लोक संगीत एवं कला संकाय द्वारा लोक गीतों की सांगीतिक प्रस्तुति दी गई। जिसके अन्तर्गत छत्तीसगढ़ी लोक गीतों के विविध प्रकारों जैसे – सोहर, बधाई, तेल जघ्घी, नहडोरी, सुआ नृत्य गीत, ददरिया, कर्मा गीत, नाचा गीत, लोक भजन, जस गीत, फाग गीत आदि गीतों में राम की छवि को प्रस्तुत किया गया।
राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल संचालन लोक संगीत विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. योगेन्द्र चौबे ने किया। यह आयोजन इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ की कुलपति पद्मश्री श्रीमती मोक्षदा(ममता) चन्द्राकर जी के मार्गदर्शन एवं परिकल्पना से ही सफल हो सका।



