जनसुनवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति, जनसुनवाई में ग्रामीणों की अनदेखी

रिपोर्ट : जोगी सलूजा/खरोरा

तिल्दा-खरोरा परिक्षेत्र लगातार औद्योगिकीकरण के चलते प्रदूषण की मार झेल रहा है, सिलतरा औद्योगिक इलाके से बड़े बड़े स्पात संयंत्रों के साथ स्टील व पॉवर कम्पनी को स्थानांतरित कर इलाके में स्थापित की जा रही है जिसके कारण धूल धुआं और रासायनिक अपशिष्टों से त्रस्त ग्रामीण कई तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं पर शासन-प्रशासन को शायद लोगों की जिंदगी से ज्यादा उद्योगों की चिंता है जिन्हें बसाने के लिए नियमों को भी ताक पर रख खाना पूर्ति के लिए जनसुनवाई आयोजित की जाती है। ताजा मामला तिल्दा तहसील के ग्रामपंचायत जलसो के आश्रित ग्राम नकटी में आयोजित जनसुनवाई का है जहां मेसर्स एमएसएम एंड एएनडीबी स्पात व पॉवर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के लिए पर्यावरण विभाग ने जनसुनवाई का आयोजन किया था। 32 एकड़ रकबे में स्थापित होने वाली इस कम्पनी को लेकर आसपास के ग्रामीणों में विरोध था ऐसे में कम्पनी प्रबंधन ने प्रशासन के अधिकारियों और ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों से मिलकर गुपचुप जनसुनवाई सम्पन्न करा लिया।

मीडिया को जनसुनवाई की खबर थी पर जब तक मीडिया पहुंचती सब कुछ सम्पन्न हो चुका था, कुछ ग्रामीण उपस्थित थे जिन्हें अपनी बात रखने का मौका नही दिया गया था ऐसे में मीडिया को देख वे मुखर हो गए और कैमरे में इस जनसुनवाई का विरोध किया ग्रामीणों ने बताया कि ग्राम सरपंच, पांचों और छुटभैया नेताओं की मिलीभगत और प्रशासनिक अधिकारियों के चलते आधे घण्टे में जनसुनवाई पूरी कर ली गई, कुछ चुनिंदा अपने लोगों को ही प्रबंधन के पक्ष में बोलने के लिए माइक दिया गया जिसका विरोध करने के बाद भी ग्रामीणों को जबरिया चुप करा दिया गया।

परप्रांतियों को देते हैं रोजगार,स्थानीय लोगों को नही देते काम,,

 

ग्राम नकटी खपरी के कुछ ग्रामीण युवकों ने अपनी पीड़ा रखी और मीडिया को बताया कि इस इलाके में लगभग सौ से ज्यादा छोटे बड़े उद्योग स्थापित हैं जहां बिहार,बंगाल और उड़ीसा से मजदूर लाकर काम कराया जा रहा है, स्थानीय युवाओं को नेतागिरी करने की उलाहना देकर काम से बाहर कर दिया जाता है, दरअसल उद्योगों में मजदूरी को लेकर भी भारी शोषण स्थानीय मजदूरों को झेलना पड़ रहा है जहां एक ओर बाहरी मजदूरों को रहना खाना फ्री के साथ 20 से 22 हजार रुपये वेतन दिया जाता है वहीं स्थानीय ग्रामीणों को 12 से 15 हजार रुपए बहुत होते हैं जिसका विरोध करने पर प्रबंधन भगा देता है।

 

‘गांव की बहू बेटियों के साथ अनाचार बढ़ा है’

 

गांव के एक बुजुर्ग ने औद्योगिकीकरण को इस लिए भी घातक बताया क्योंकि इन उद्योगों में काम करने आये बाहर प्रदेश के मजदूर गांव में किराए का मकान लेकर रहते हैं और स्थानीय महिलाओं, लड़कियों की अपने प्रेम जाल में फंसा कर भगा ले जाते हैं और महानगरों में बेच देते हैं, इस तरह के कई मामलों की शिकायत स्थानीय थानों में दर्ज भी है वही बहुत से लोग पीड़ित भी हैं।

 

ग्रामीण इलाकों की चारागाहों पर अतिक्रमण, नही बचे मैदान!

 

 

स्थानीय लोगों का आरोप है कि उद्योगों द्वारा गांव की आबादी और घास जमीनों पर भी कब्जा जमा लिया जाता है जिससे उन्हें परेशानी होती है मवेशियों के लिए चारागाह और बच्चों के लिए खेल मैदान भी नही होने से दिक्कत होती है।

 

जनसुनवाई में ग्रामीणों की अनदेखी

 

यूं तो पर्यावरण विभाग स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी और कलेक्टर की उपस्थिति में स्थानीय लोगों की बातों को सुनकर उनके समर्थन या विरोध पर सरकार विचार करने के बाद ही किसी उद्योग प्रबंधन को अनापत्ति प्रमाण पत्र देती है पर अब यह प्रक्रिया भी नाममात्र का रह गया है, प्रभावित ग्राम पंचायत के सरपंच और पंचों को पैसे बांट दिए जाते हैं और क्षेत्र के दबंगों से मिलीभगत कर फर्जी लोगों को ग्रामीण बनाकर प्रबंधन अपने समर्थन में बातें रिकॉर्ड करा लेती है जिसकी शिकायत भी ग्रामीणों ने मीडिया से की और जनसुनवाई को शून्य करने सरकार से आग्रह करते हुए 5 जनवरी को आयोजित एक और पॉवर प्लांट की जनसुनवाई का विरोध करने की बात कही।

 

रिपोर्ट: जोगी सलूजा खरोरा

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