कस्बा से शहर बनने की राह तकता सक्ती , स्थानीय प्रशासन की कुम्भकर्णी नींद , बेजाकब्जाधारियों की मौज

सक्ती : (राजीव लोचन सिंह संपादक सौमित्र)
अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता यह कस्बा जो नगर बनने की चाह में बेचैन है मगर प्रशासनिक अधिकारियों की कुम्भकर्णी नींद और दिव्यांग बेबस नगर पालिका के कारण अपनी उम्मीदों को दम तोड़ते देख रहा है।
नगर के सौंदर्यीकरण और विकास के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए मगर हालात बद से बदतर की स्थिति में आ गए हैं। नगर के भीतर गुजरती हर सड़क पर स्थानीय दुकानों के सामने किसी भी प्रकार की पार्किंग व्यवस्था नहीं है इससे इन दुकानों में आने वाले ग्राहकों के वाहन सड़कों पर खड़े किए जाते हैं जिससे मार्ग अवरुद्ध होकर आवागमन में असुविधा उत्पन्न करते हैं।

प्रशासन की नाक के नीचे कचहरी चौक/ अग्रसेन चौक में स्थानीय फुटकर व्यवसायियों का कब्जा है वहीं दूसरी ओर बड़े दुकानदारों ने भी अपना सामान सड़क तक फैला दिया है। नगर के बीच मुख्य मार्ग कचहरी से हटरी जाने वाले मार्ग में स्थित दुकानदारों के कारण मुख्यमार्ग भी संकीर्ण हो चला है इस मार्ग पर हमेशा गाड़ियों की भीड़ रहती है यदि किसी चारपहिया वाहन को यहां से गुजरना पड़े तो चालक को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और अप्रिय स्थिति का भी सामना करना पड़ता है।

 

 

नगर के हृदय स्थल हटरी से अस्पताल मार्ग की हालत देखकर तो कोई भी वाहन चालक अपने वाहन को गुजारने से पहले ऊपरवाले को याद करता है क्योंकि यहां दुकानों के सामने बेतरतीब खड़े वाहनों के बीच अपना वाहन निकलना कड़ी परीक्षा पास करने जैसा है।

 

 

 

नगर के गौरव पथ के नाम पर करोड़ों रुपए स्वाहा कर दिया गया मगर गौरव बनना तो दूर उल्टे परेशानी का सबब बन गया है। तथाकथित गौरवपथ पर स्थानीय व्यापारियों और उनके ग्राहकों ने कब्जा जमा लिया है। गौरवपथ के बगल में पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ का निर्माण किया गया था जिसपर सभी दुकानदारों ने अपनी अपनी वस्तुओं की प्रदर्शनी लगा ली है जिससे फुटपाथ गायब हो चुका है।

 

 

 

बाजार रोड की हालत भी किसी से छुपी नहीं है यहां तो दुकान और सड़क में ज्यादा फर्क नजर नहीं आता है । मार्ग में स्थित दुकानदारों ने सड़क तक अपने सामानों की प्रदर्शनी लगा कर ग्राहकों को आकर्षित कर रहे हैं ।

 

 

एक तरफ पूरा देश प्रदेश उन्नति कर रहा है वहीं यह क़स्बा अपने वजूद को बचाने का असफल प्रयास कर रहा है। नगरपालिका तथा प्रशासन की लापरवाही से हर तरफ बेजाकब्जा करने वालों की होड़ मची हुई है। स्थानीय नगरपालिका की उदासीनता के कारण फुटकर व्यवसायी सड़कों के किनारे अपनी रोजी रोटी के लिए बेजाकब्जा किए बैठे हैं वहीं कई रसूखदारों ने तो अपनी ऊंची पहुच और सत्ता से नजदीकी को आधार मानकर बड़ी शान से मार्गों में और तालाब किनारों में कब्जा जमाया हुआ है।
कुछ वर्षों पहले सक्ती में पदस्थ अनुविभागीय अधिकारी कार्तिकेय गोयल ने सक्ती को बेजाकब्जा मुक्त कराने का बीड़ा उठाया था । उनकी कार्यशैली से सभी बेजाकब्जाधारियों में प्रशासन के प्रति भय व्याप्त था जिससे उनकी रातों की नींद और दिन का चैन दोनों फुर्र हो गए थे ।
वर्तमान में बिना किसी प्रशासनिक डर के “सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का ” की तर्ज पर लोग बेख़ौफ़ बेजाकब्जा को अंजाम दे रहे हैं जिससे सक्ती की सड़कों पर आवागमन चुनौतीपूर्ण कार्य हो चुका है। यदि सक्ती को इस दुर्दशा से उबार कर अन्य शहरों की तरह विकसित करना है तो हरहाल में बेजाकब्जाधारियों से कब्जा मुक्त कराना ही होगा जिससे सक्ती अपने क़स्बाई रूप से ऊपर उठकर एक सुंदर शहर बनने की ओर अग्रसर हो सके। अब देखना यह है कि स्थानीय प्रशासन की जानकारी में हुए सभी बेजाकब्जा पर नगर प्रशासन कब ध्यान देती है और कब सक्ती को कस्बे से शहर के रूप में परिवर्तित करती है।

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