बढ़ते हुए उघोग से जन जंगल प्रभावित, कट रहे जंगल, गिर रहा पानी का स्तर हसदेव का विरोध, इधर समर्थन
रिपोर्ट : जोगी सलूजा
खरोरा : रायपुर जिले के अंतर्गत नगर परिक्षेत्र में इन दिनों उद्योग लगाने की होड़ सी मची हुई है। यहां एक के बाद एक उद्योग स्थापित करने के लिए पर्यावरण जन सुनवाई का आयोजन किया जा रहा है। पर्यावरण और विस्थापन की चिंता करने वाले कई संगठन इसका विरोध कर रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि जन सुनवाई के पहले बनाए गए नियमों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है। इसलिए ऐसी सुनवाईयों को निरस्त कर देना चाहिए जिस पर नियम कायदों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
छत्तीसगढ़ में रायपुर जिले के अंतर्गत नगर परिक्षेत्र में पानी की उपलब्धता है। यही वजह है कि यहां लगातार स्टील सहित अन्य फैक्ट्रियां,उद्योग स्थापित करने के लिए होड़ सी मच गई है। बीते साल भर से कई फैक्ट्रियां उघोग रायपुर जिले में खुली हैं और भी खुल रही हैं पर्यावरणीय जनसुनवाई बारी-बारी से चल रही जनसुनवाई हो रही है । इनमें ज्यादातर पावर प्लांट और स्पंज आयरन के कारखाने शामिल हैं।
क्यों होती है पर्यावरणीय जनसुनवाई..?
कोई भी उद्योग अथवा स्पंज आयरन, स्टील खदान शुरू करने से पहले संबंधित इलाके में होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव के लिए जन सुनवाई की जाती है,जिसके लिए संबंधित उद्योग अथवा खदान के प्रबंधन द्वारा इलाके के पर्यावरण पर संभावित प्रभाव की रिपोर्ट (ई आई ए ) प्रस्तुत की जाती है। इसके आधार पर उद्योग के समर्थन या विरोध में यहां के नागरिक अपनी बात कहते हैं। लोक सुनवाई होने के बाद ही किसी भी खदान या कारखाने को शुरू करने की अनुमति दी जा सकती है। विरोध दर्ज होने पर रोक लगा दी जाती है।
एक ही तरह की होती है रिपोर्ट
परिक्षेत्र में प्रस्तावित उद्योगों का विरोध करने वाले संगठनों का आरोप है कि कारखानों के लिए जो भी ईआइए रिपोर्ट लगाई जा रही है वह एक ही तरह की होती हैं, ऐसा लगता है कि पुरानी रिपोर्ट को कॉपी करके पेस्ट कर दिया गया है। ताजा मामला 4 व 5 जनवरी का है जहां प्रा लि की स्थापना के लिए पर्यावरणीय जनसुनवाई का आयोजन ग्राम पंचायत नकटी खपरी में किया जाना है। जिस पर लगभग 120 एकड़ पर दो उघोग स्थापित होना हैं। पूरे जमीन अत्यधिक जंगल है।
उघोग से बंजर होती भूमि
एक तरफ जहां हसदेव जंगल का लगातार विरोध हो रहा है तो वहीं लगातार नगर परिक्षेत्र में स्थापित होते उघोग आने वाले भविष्य में निश्चित ही चिंता का कारण है क्योंकि उघोग लगने जानवरों के चरने के लिए जगह नहीं रहती जंगल की कटाई कर दी जाती है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण संतुलन बिगड़ जाता है। पानी का स्तर भी लगातार गिरावट आई जा रही है। ग्रामीणों को दूर दराज से पीने का पानी की व्यवस्था करनी पड़ रही है।
अनुमति दिए जाने का क्या औचित्य?
प्रायोजित होती है पर्यावरण जनसुनवाई
पर्यावरण प्रेमी बताते हैं कि उन्होंने ऐसी पर्यावरणीय सुनवाई में जाना छोड़ दिया है, इसकी बजाय वे पर्यावरण संरक्षण मंडल के कार्यालय में ही अपनी लिखित आपत्ति दर्ज करा देते हैं। उनके मुताबिक रायपुर जिले में अधिकांश लोक सुनवाई एक ही स्थल पर हो रही है, वहीं पर्यावरणीय सुनवाई में किराए के लोगों को बिठा दिया जाता है जो प्लांट के समर्थन में अपनी बात कहते हैं। यहां प्रभावित इलाके के ग्रामीणों की बजाय मजदूर ज्यादा नजर आते हैं।
और कितने खुलेंगे उद्योग एवं खदान?
रायपुर जिले में एक के बाद एक कई लोक सुनवाई हो रही है। यहां 4 व 5 जनवरी को भी एक लोक सुनवाई है। बता दें कि रायपुर जिले में दर्जनों छोटे-बड़े उद्योग हैं। उद्योगों के चलते यहां का पर्यावरण वैसे भी प्रदूषित हो चुका है इसके बाद भी यहां अनेक फैक्ट्रियां और स्पंज आयरन के कारखाने प्रस्तावित है, वहीं अन्य खदानों का भी विस्तार किया जा रहा है।
बहरहाल जिस तरह से रायपुर जिले में इन दिनों प्राथमिकता के आधार पर जन सुनवाईयां चल रहीं हैं, उससे ऐसा लगता है कि जल्द ही इन उद्योगों को प्रारंभ करने की अनुमति भी दे दी जाएगी।



